गैस्ट्रोएंटरोलॉजी केंद्र

संकाय

नाम             पदनाम           विभाग                   ईमेल आईडी

प्रो करतार सिंह       विभागाध्यक्ष प्राध्यापक   गैस्ट्रोएंटरोलॉजी                singh.kartar @ pgimer.edu.in

प्रो डी॰के॰ भसीन      प्राध्यापक            गैस्ट्रोएंटरोलॉजी                bhasin.deepakk @ pgimer.edu.in

प्रो एसवी राणा       प्राध्यापक            गैस्ट्रोएंटरोलॉजी                rana.sv @ pgimer.edu.in

प्रो बी॰आर॰थापा       प्राध्यापक            गैस्ट्रोएंटरोलॉजी (बाल रोग)       thapa.br @ pgimer.edu.in

प्रो राकेश कोचर      प्राध्यापक            गैस्ट्रोएंटरोलॉजी                kochhar.rakesh @ pgimer.edu.in

प्रो चेतना वैष्णवी     प्राध्यापक            गैस्ट्रोएंटरोलॉजी                vaishnavi.chetana @ pgimer.edu.in

डॉ. उषा वी॰ दत्ता      अतिरिक्त प्रोफेसर      गैस्ट्रोएंटरोलॉजी                dutta.ushavenkatac @ pgimer.edu.in

डॉ. एस.के. सिन्हा     अतिरिक्त प्रोफेसर      गैस्ट्रोएंटरोलॉजी                sinha.sk @ pgimer.edu.in

डॉ. के.के. प्रसाद      अतिरिक्त प्रोफेसर      गैस्ट्रोएंटरोलॉजी                prasad.kaushalkishore @ pgimer.edu.in

डॉ. अरुण कुमार शर्मा एसोसिएट प्रोफेसर     गैस्ट्रोएंटरोलॉजी (विषाणु विज्ञान) sharma.arunk @ pgimer.edu.in

डॉ. साधना भसीन लाल          सहायक प्रोफेसर      गैस्ट्रोएंटरोलॉजी                bhasin.sadhna @ pgimer.edu.in

डा. सुरिंदर राणा      सहायक प्रोफेसर      गैस्ट्रोएंटरोलॉजी                rana.surindersingh @ pgimer.edu.in

डा. रविन्द्र गोयल     सहायक प्रोफेसर      गैस्ट्रोएंटरोलॉजी (बाल रोग)

 

अनुसंधान एवं शोध कार्य

 

आई॰सी॰एम॰आर॰

1. स्वस्थ लोगों और आइ॰बी॰एस॰ के रोगियों में लैक्टोज हाइड्रोजन सांस परीक्षण पर प्रमुख मेथनोजेनीक वनस्पतियों का प्रभाव.

यह अध्ययन बताता है कि आइ॰बी॰एस॰ के रोगियों की तुलना में स्वस्थ उत्तर भारतीयों मैं अधिक मात्रा में उपवासिय मीथेन उत्पादन होता है। लैक्टोज हाइड्रोजन सांस परीक्षण कम संकया के स्वस्थ लोगों और आइ॰बी॰एस॰ के प्रमुख मीथेन उत्पादक मरीजों मैं पाया गया, तुलना में उन मरीजों के जिनमे मीथेन उत्पादन कम था। जिन आइ॰बी॰एस॰ रोगियों में प्रमुख मेथनोजेनीक वनस्पति थी उनमे पेट फूलने और दस्त के लक्षण कम थे, तुलना करने पर उनसे जिनमे कम मेथनोजेनीक वनस्पतियां थी। परीक्षण के दौरान भी पेट फूलने और दस्त के लक्षण उन आइ॰बी॰एस॰ रोगियों और स्वस्थ लोगों मैं कम थे जिनमे अधिक मेथनोजेनीक वनस्पतियाँ थीं।

 

2. चूहों में आई॰एन॰एच॰ और आर॰आई॰इफ॰ से होंने वाली हेपटोटोक्सिसिटी पर लहसुन और कैरोटीनोइड्स के प्रभाव

हमारे नतीजे दर्शाते हैं की लहसुन, कैरोटीनोइड्स और एन॰ए॰सी॰ तत्वों का सम्मिश्रण चूहों को आई॰एन॰एच॰+आर॰एम॰पी उत्पन्न हेपटोटोक्सिसिटी से आंशिक रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। ऊतकीय मूल्यांकन पर जो चूहे इन तत्वों को पा रहे थे, उनका जिगर लगभग सामान्य आकारिकी पाया गया। इसके अलावा, हेपटो-संरक्षित समूहों में जिगर और खून दोनों मैं एंटीऑक्सिडेंट के स्तरों में काफी वृद्धि पायी गयी। लिपिड स्तर में भी स्पष्ट परिवर्तन था। हमारे परिणाम बताते हैं की यह पूरक आहार आंशिक रूप से एंटीऑक्सीडेंट और एंटिलिपिड कार्रवाई करते हैं। इन एंटीऑक्सीडेंट का केवल आंशिक संरक्षण, आई॰एन॰एच॰+आर॰एम॰पी॰ द्वारा अन्य तंत्रों के अस्तित्व का बोध करता है जो यकृत की चोट पहुंचाते हैं और जिन पर भविष्य मे अध्ययन करने की आवश्यकता है।

 

डी॰बी॰टी॰

3. भारतीय बाल्यकाल सिरोसिस में कॉपर-बाइंडिंग प्रोटीन।

कॉपर-बाइंडिंग प्रोटीन अलग किया गया और उसकी संरचना और कार्य की विशेषताओं का अध्यन किया गया।

 

विभागीय

4. क्या डुओदेनल बल्ब बायोप्सी सीलिएक रोग के निदान के लिए पर्याप्त है?

सीलिएक रोग में डुओदेनल बल्ब और डुओदेनम के दूसरे भाग से ली गयी बायोप्सीयां अंतर्निहित रोग की समान रूप से प्रतिनिधि हो सकती हैं। इनसे सीलिएक रोग का पुष्ट निदान किया जा सकता है भले ही बायोप्सी दूर की डुओदेनम या जेज्यूनम से नहीं लीं गईं हैं।

 

5. बाल सीलिएक रोग में डुओदेनल मुकोसा के हिस्टोलोगीकल चोट की स्थानीय परिवर्तनशीलता

सीलिएक रोग-ग्रस्त बच्चों के ऊतकीय हिस्टोलोगीकल घावों के वितरण मैं काफी स्थानीय परिवर्तनशीलता देखी गयी। अतः, कई इंडोस्कोपिक बायोप्सीयां हमेशा प्राप्त की जानी चाहिए, न केवल बाहर डूओडेनुम से, बल्कि बल्ब से भी।

 

6॰ एंटीबायोटिक-संबन्धित दस्त के मल मैं कैंडीडा के पाये जाने की संभावना और पायी गई कैंडीडा का प्रजातीकरण

अस्पताल में भर्ती और एंटीबायोटिक दवाओं को लेते हुए दस्त-ग्रस्त मरीजों से प्राप्त १५० लगातार-आए मल के नमूने जिनमे क्लोस्ट्रीडियम दिफ़्फ़ीसिल विष और अन्य आंत के कीटाणुओं नहीं पाये गये, उनका अध्यन किया गया। इनमे कैंडीडा होने की संभावना को जानने के लिए इसको उगाने का प्रयास हुआ। उगने पर उसका प्रजातीकरण किया गया। कैंडीडा को २६.६% रोगियों से शुद्ध कल्चर के रूप में पाया गया। प्रमुख आइसोलेट्स थे: कैंडीडा ट्रोपिकालिस और कैंडीडा अल्बिकांस। अन्य प्रजातियों जो पायी गईं, वह थीं: कैंडीडा कृसीआइ, कैंडीडा ग्लबराता और कैंडीडा गुईलीयरमोनदीआइ। अतः विभिन्न कैंडीडा प्रजातियों एंटीबायोटिक-संबन्धित दस्त में महत्वपूर्ण भूमिकायेँ निभाती हैं।

 

7. दस्त ग्रस्त रोगियों में माइलोपेरोक्सीडेज़ गतिविधि का आकलन.

माइलोपेरोक्सीडेज़ गतिविधि का अध्ययन ७२८ दस्त के मल के नमूनों और ६८ सामान्य नमूनों में किया गया। ३२% रोगियों के नमूनों ने माइलोपेरोक्सीडेज़ दर्शाया। इनकी गतिविधि ०.०७ से ३.०० इकाइयों प्रति मिलीलीटर थी। माइलोपेरोक्सीडेज़ आकलन एक सरल और तेजी से मात्रात्मक परीक्षण है, जो कि इंफ्लमेटोरी डायरिया मैं इन्फ़्लेमेशुन मापने के एक उपाय के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

 

8. अल्सरेटिव कोलाइटिस में सीरम सी प्रतिक्रियाशील प्रोटीन, मल माइलोपेरोक्सीडेज़ और लैक्टोफेरिन का मूल्यांकन

सीरम सी प्रतिक्रियाशील प्रोटीन, मल माइलोपेरोक्सीडेज़ और लैक्टोफेरिन की जांच ५० अल्सरेटिव कोलाइटिस रोगियों और ५० आयु-मिलाये गए स्वस्थ प्रतिभागियों में की गई। सभी तीन इन्फ़्लेमेट्री मापदंडों को रोगीयों में महत्वपूर्ण तौर पर बढ़ा हुआ पाया गया।

 

9. पित्ताशय पथरी के रोगियों में पित्ताशय थैली के डिसफंकशन का आपतन और उसके भविष्यवक्ता

५० रोगियों का ६ सप्ताह प्रसवोपरांत पित्त पथरी, पित्तकीचड़ और पित्ताशय थैली की गतिशीलता के विकार की उपस्थिति के लिए अध्ययन किया गया।  शोध मे २०% रोगियों मैं पित्त पथरी, १०% में पित्तकीचड़, २४% में कम इंजेक्शन फ्रैक्शन और ५६% रोगियों में वसायुक्त भोजन करने पर सुस्त प्रतिक्रियाऐ मिलीं। भोजन मैं कम प्रोटीन की मात्रा पित्ताशय की थैली की गतिशीलता विकार और पित्त पथरी से जुड़ी हुई है। आहार मैं प्रोटीन की कमी तथा लोहे की कमी मैं उच्च वसा का सेवन प्रसवोत्तर अवधि में पित्ताशय की पथरी होने का जोखिम बढ़ा देते हैं।

 

10. घुटकी गतिशीलता विकार पर तनाव और विश्राम का प्रभाव

संदिग्ध घुटकी गतिशीलता विकार वाले ३४ रोगियों का अध्ययन किया गया। ६७% डिसमोटीलिटि रोगियों के जीवन में विक्षिप्त लक्षण और उच्च तनाव स्कोर पाये गए।  घुटकी डिसमोटीलिटि का विश्राम दिलाने वाले सरल अभ्यासों और परामर्श दिये जाने पर सुधार हुआ। अध्ययन से स्थापित हुआ की तनाव-संबंधित घुटकी गतिशीलता विकार अत्यंत आम है और बिना दवाओं के अन्य सरल उपायों से इसका इलाज किया जा सकता है।

 

11. विटामिन बी१२ की कमी के कारण, इसका प्रजनन और बी१२ की कमी के भविष्यवक्ता

४०% परिधीय न्युरोपटी वाले मरीजों मैं विटामिन बी१२ की कमी थी और इस कमी के कई कारण थे। इस शोध मैं जो कारण पहचाने गए, वे थे: शाकाहारी आहार (१००%), सांघातिक अरक्तता (२०%), हेलिकोबेक्टर पिलोरी (१७%) और बैक्टीरियल अतिवृद्धि (२०%)। विटामिन की कमी (बी१२ <२०० पीकोंग्राम प्रति एम॰एल॰) वाले रोगियों मैं ६४% मैं पार्श्विका सेल विनाश पाया गया। तुलना मैं, सामान्य विटामिन बी१२ समूह में १८% मैं इन कोशिओकाओं का विनाश पाया गया। कम विटामिन बी१२ के स्तर के भविष्यवक्ताओं मैं अंगुली रंजकता (पी=०.००३), ओष्ठविदरता (पी=०.०१५), एम॰सी॰वी॰>१०० (पी=०.००४), लाल रक्त कोशिका मैं आकार वृद्धि (पी=०.००१) और नेऊट्रोफिल कोशिकाओं का हाइपेरसेगमैनटेशन (पी=०.००१) हैं।

 

12. पित्ताशय की पथरी वाले रोगियों मैं पित्त ठहराव का आपतन व इस के भविष्यवक्ता

१२० ऐसे मरीज़ जिंहे पित्ताशय की पथरी थी तथा जिनके पित्ताशय निकालने की शल्य क्रिया के लिए योजना बनाई जा रही थी, उनका अध्ययन किया गया। हीडा स्कैन पर, ३९ में पित्ताशय देखा न जा सका, ६४ में जी॰बी॰ई॰एफ॰ सामान्य था (>३५%), और १७ मैं कम था (१-३५%)। औसत जी॰बी॰ई॰एफ॰ ३९±३३% था। पित्त ठहराव ४७% पित्ताशय की पथरी के मरीजों में मौजूद था। पित्त ठहराव का स्वतंत्र पूर्वानुमान कराने वाले लक्षण व चिन्ह थे: कई पथरियाँ, कम एस॰ई॰एस॰, भोजन के बाद बेचैनी, और गैर-पंजाब/हरियाणा/चंडीगढ़ राज्यों से मूल।

 

13. सिन्टीग्राफी पर अदृष्ट पित्ताशय का संबंध पथरी मरीजों की पित्ताशय म्यूकोसा में कैंसर-पूर्व घावों के बढ़े हुए आपतन के साथ है

पित्ताशय की पथरी वाले ४० मरीजों का अध्यन किया गया। हीडा स्कैन पर, ४०% मैं सामान्य पित्ताशय सिकुड़न पायी गयी, २५% मैं ई॰एफ॰ कम था और ३५% में तो पित्ताशय देखे ही नहीं जा सके। ऊतकीय परीक्षा ने ७२.५% में इतरविकास दिखाया, लेकिन किसी मैं भी डिस्प्लासिया / कैंसर-इन-सीटू नहीं था। इतरविकास ३५% में अधूरा-आंत्र (आई॰आई॰एम॰) प्रकार का था, १५% मैं पूर्ण-आंत्र (सी॰आई॰एम॰) प्रकार का था और २२.५% मैं जी॰एम॰ प्रकार का था। रसद प्रतिगमन विश्लेषण पर, पित्त-उद्गम पेट का दर्द (ओ॰आर॰ २०.४, पी=०.०३), अदृष्ट पित्ताशय (ओ॰आर॰ ५.७, पी=०.०४१) और ५० साल से अधिक उम्र (ओ॰आर॰ ५, पी=०.०८) की उपस्थिति आई॰आई॰एम॰ के भविष्यवक्ता पाए गए। उत्तर भारतिय पित्ताशय की पथरी के व्यथित मरीजों में श्लैष्मिक इतरविकास (मुकोसल मेटाप्लासीआ) बहुतायत (७२.५%) मैं पाया जाता है, जो की ३३% में आईआईएम प्रकार का होता है। हीडा स्कैन पर अदृष्ट पित्ताशय, पित्तोद्गम पेट का दर्द और अग्रिम आयु आई॰आई॰एम॰ की उपस्थिति के स्वतंत्र भविष्यवक्ता हैं।

 

भर्ती मरीजों के लिए सेवाएँ

गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सेंटर के लिए नेहरू अस्पताल में ५६ बिस्तर पृथक रखे गए हैं, निम्नलिखित वितरण के साथ:

वयस्क: ३८ बिस्तर और बालक: १८ बिस्तर

 

बाह्य रोगी और नैदानिक प्रयोगशाला सेवायें

गैस्ट्रोएंटरोलॉजी की उत्कृष्ट विशेषता का विभाग, खास जी॰ई॰ और आंत क्लिनिक और बाल चिकित्सा जी॰ई॰ क्लिनिक के माध्यम से रोगियों के लिए सेवाएं प्रदान करता है। यहाँ नियमित रूप से सप्ताह में दो बार सामान्य मेडिकल ओपीडी सेवाएं चलती हैं। विभाग अपने एंडोस्कोपी, रेडियोलोजी, विषाणु विज्ञान, जैव रसायन, किण्वक विज्ञान, ऊतकविकृति विज्ञान, सूक्ष्म जीव विज्ञान, और मैनोमेट्री वर्गों के माध्यम से अन्वेषण-हेतु व नैदानिक सुविधाओं प्रदान करता है।

 

बाह्य रोगी विभाग

1. वयस्कों के लिए

2. बाल रोगियों के लिए

 

एंडोस्कोपी

1. वयस्कों - नैदानिक + उपचारात्मक

2. बालकों - नैदानिक + उपचारात्मक

 

रेडियोलॉजी खंड

1. बेरियम परीक्षा

2. विशेष जांचें (ई॰आर॰सी॰पी॰, स्टेंट इत्यादि)

3. अल्ट्रासाउंड, रंगीन डॉप्लर और एफ़॰एन॰ए॰सी॰

 

जैव रसायन खंड

1. कुआत्मसाती मापदंड

2. ए॰डी॰ए॰

3. एस॰ए॰ए॰जी॰

4. एच 2 श्वास परीक्षण

5. टी॰टी॰जी॰ प्रतिरक्षी परीक्षण

6. ट्यूमर सूचक (सी॰ई॰ए॰ और सी॰ए॰१९.९, सी॰ए॰२४२)

7. गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल किण्वक परीक्षण

8. इंटरलूकीन-१०, सेरोटोनिन

9. पदार्थ पी

10. ऐनजीओटेन्सिन प्रवर्तक किण्वक, गैसट्रिन

11. जारणकर्त्ता-विरोधी (एंटीऑक्सीडेंट) मापदंड

 

ऊतकविकृति विज्ञान खंड

1. आन्त्रगुहिका से बायोप्सी जांच

2. मलीय चर्बी मापना (सूडान तृतीय रंजक द्वारा)

 

सूक्ष्म जीव (माइक्रोबायोलॉजी) खंड

1. सीडी / परख कल्चर

2. बैक्टीरियल कल्चर

3. सी प्रतिक्रियाशील प्रोटीन

4. माईलोपरोक्सीडेज़

5. मलीय लैक्टोफेरिन

 

दाबमापी खंड

1. ऊपरी और निचली भोजन-नलिका संवरणीयों और गुदा-मलाशय का दाबमापन

2. २४ घंटे पी॰एच॰ निगरानी

 

प्रशिक्षण

विभाग डी॰एम॰ (गैस्ट्रोएंटरोलॉजी), एम॰डी॰ (आंतरिक चिकित्सा), एम॰डी॰ (बाल रोग) और पी॰एच॰डी॰ छात्रों को प्रशिक्षण प्रदान करता है। डी॰एम॰ निवासिय चिकित्सक छात्र क्लिनिकल ​​गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, बाल चिकित्सा गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, जी॰ई॰ विक्रति विज्ञान, जी॰ई॰ रेडियोलॉजी, जी॰ई॰ विषाणु विज्ञान और जी॰ई॰ रसायन विज्ञान / किण्वक विज्ञान के अलावा पी॰जी॰आई॰ के सामान्य शल्य चिकित्सा, सूक्ष्मजीव विज्ञान, परजीवी विज्ञान, विक्रति विज्ञान और हेप्टोलोजी विभागों में घुमते हैं। देश के विभिन्न भागों और संस्थाओं से डी॰एम॰ निवासिय चिकित्सक छात्र गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग और जी॰ई॰ रेडियोलॉजी में अल्पावधिक प्रशिक्षण के लिए और पर्यवेक्षकों के रूप में आते हैं।