पी॰जी॰आई॰एम॰ई॰आर॰ का संक्षिप्त इतिहास
पी॰जी॰आई॰एम॰ई॰आर॰ के जन्म का पहला अध्याय लिखा गया पंजाब के भूतपूर्व मुख्य मंत्री सरदार परताप सिंह कैरों, और तत्कालीन संयुक्त पंजाब राज्य के चिकित्सा शास्त्र के विलक्षण और प्रतिष्ठित विशेषज्ञों की दृष्टि और मनन से। इस कार्य मैं उनकी सहायता की स्वतन्त्र भारत के पह्ले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने। पंडितजी वैज्ञानिक और अनुसंधान केन्द्रों को ज्ञान के मंदिर-समान मानते थे जो उनकी दृष्टि मैं तीर्थ स्थलों के तुल्य थे।
पी॰जी॰आई॰एम॰ई॰आर॰ का शुभारंभ १९६२ मैं हुआ और ७ जुलाई १९६३ को पंडित नेहरू ने उस हस्पताल का उद्घाटन किया जो आगे चल के उनके नाम पर नेहरू हस्पताल कहलाया। शुरुआत मैं संस्थान अविभाजित पंजाब सरकार के अधीन रहा। राज्य के पुनर्गठन के बाद इस संस्थान के प्रशासनिक नियंत्रण को नवंबर १९६६ को चंडीगढ़ संघ राज्य क्षेत्र को पारित कर दिया गया। १९६७ मैं संसद के अधिनियम के तहत संस्थान भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय मैं संग्रहीत एक स्वायत्त निकाय बन गया। इस संस्थान का निम्न जनादेश है:
- उच्च स्तरीय और अति गुणवत्तापूर्ण रोगी देखभाल - स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना - चिकित्सा और शल्य चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में अत्यधिक योग्य चिकित्सा शिक्षकों की देश की जरूरत को पूरा करना - स्वास्थ्य गतिविधियों की सभी महत्वपूर्ण शाखाओं में कर्मियों के प्रशिक्षण के लिए शिक्षा सुविधाएं प्रदान करना - समुदाय-आधारित बुनियादी अनुसंधान एवं शोध कार्य करना
संस्थान के संस्थापकों (प्रो॰ तुलसी दास, प्रो॰ संतोख सिंह आनंद, प्रो॰ पी॰एन॰ छुट्टानी, प्रो॰ बी॰एन॰ आइकत, प्रो॰ संतराम ढल और प्रो॰ बालाकृष्णा) ने संस्थान को उत्कृष्टता के पथ पर अग्रसर किया।
ऐतिहासिक लम्हे - ७ जुलाई १९६३ को पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा नेहरू अस्पताल का उद्घाटन। - राष्ट्रपति डॉ. ज़ाकिर हुसैन द्वारा दिसंबर १९६७ में ज़ाकिर हॉल का उद्घाटन। - प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा नवंबर १९६८ में रिसर्च खंड का उद्घाटन। - नेहरू अस्पताल के गलियारों मैं चलते पंडित जवाहर लाल नेहरू। उनके साथ हैं- प्रो॰ तुलसी दास एवं प्रो॰ संतोख सिंह आनंद। - भारत के उप-प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई द्वारा १९ जनवरी १९६९ को सरदार परताप सिंह कैरों (मुख्यमंत्री पंजाब) के रूपचित्र का अनावरण। - उप-प्रधानमंत्री श्री. मोरारजी देसाई संस्थान की आगंतुक पंजी पर हस्ताक्षर करते हुए।
सामान्य सिंहावलोकन पीजीआई के अस्तित्व का श्रेय पंजाब के तत्कालीन प्रगतिशील एवं सक्रिय पूर्व मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों को जाता है, जिन्होंने उत्तर क्षेत्र के लोगों के लिए प्रथम श्रेणी के चिकित्सा संस्थान की आवश्यकता की कल्पना की थी। उन्होंने डॉ. तुलसीदास, डॉ. एसएस आनंद तथा डॉ. पीएन चुट्टानी जैसे तीन प्रख्यात चिकित्सकों को इस बारे में विचार करने हेतु स्वतंत्र अधिकार दिया। संस्थान की योजना बनाने हेतु सरकार द्वारा रोगियों की बढ़ती जरूरतों एवं अति विशेषज्ञों के प्रशिक्षण तथा देश में समुचित प्रशिक्षित प्रशिक्षकों की अनुपलब्धता एवं भावी अध्यापकों हेतु प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी को पाटने के लिए सरकार द्वारा पर्याप्त वित्तीय और प्रशासनिक समर्थन दिया गया। आयुर्विज्ञान के स्नातकोत्तर विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देने, स्थानीय एवं राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप बढिय़ा गुणवत्तापरक अनुसंधान करने तथा रोगियों को उत्कृष्ट गुणवत्तापरक देखभाल प्रदान करने के उद्देश्य से संस्थान ने 1962 में कार्य करना आरंभ किया। दिनांक 23 जून, 1962 को संस्थान में पहला रोगी दाखिल हुआ, जबकि स्नातकोत्तर विद्यार्थियों के पहले बैच को 15 अप्रैल, 1963 को प्रवेश दिया गया। संस्थान के अस्पताल स्कंध, नेहरू अस्पताल का औपचारिक उद्-घाटन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 7 जुलाई, 1963 को किया। पीजीआई को पंजाब सरकार के वित्तीय एवं प्रशासनिक समर्थन से आरंभ किया गया तथा संकाय व विद्यार्थियों के चुनाव में योग्यता एकमात्र मानदंड थी। यद्यपि संस्थान को चलाने तथा रख-रखाव हेतु धनराशि पंजाब सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई, फिर भी पंजाब के विद्यार्थियों व संकाय को अधिमान नहीं दिया गया। यह संस्थान 1 अप्रैल, 1967 को भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन संसद के एक अधिनियम (1966 का अधिनियम 51) के द्वारा राष्ट्रीय महत्व का स्वायत्त निकाय बना। इस अधिनियम के आधार पर, उच्च गुणवत्तापरक रोगी देखभाल प्रदान करने, स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने, देश की आयुर्विज्ञान में उच्चतम योग्यता प्राप्त एवं प्रवीण चिकित्सा अध्यापकों की जरूरतों को पूरा करने और आधारभूत समुदाय आधारित अनुसंधान करने का आदेश दिया गया। संस्थान ने सभी तीन क्षेत्रों, नामत: रोगियों की देखभाल, चिकित्सा शिक्षा तथा अनुसंधान में उत्कृष्ट कार्य किया है। रोगियों की देखभाल का भार प्रतिवर्ष बढ़ता रहा है और अब यह बेकाबू हो गया है। 1963-64 में बाह्य रोगियों की संख्या 1,25,163 तथा 3,328 दाखिलों से बढ़कर 18,14,277 बाह्य रोगी और 68,175 दाखिलों तक पहुंच गई जो वार्षिक 20 से 30 प्रतिशत दर से बढ़ी है। इस समय यह संस्थान गंभीर वित्तीय संकट से गुज़र रहा है। रोगियों की बढ़ती संख्या के लिए अधिक संसाधनों की जरूरत होती है और यह संस्थान देश और विदेश के अनेक मेडिकल कालेजों में चिकित्सा शिक्षा की अगुवाई कर रहा है। संसाधनों की कमी के बावजूद संस्थान गुणवत्ता अनुसंधान में उत्कृष्ट कार्य कर रहा है। रोग चिकित्सकों एवं मूल वैज्ञानिकों ने वर्ष के दौरान 878 पर्चे तैयार किए तथा 123 वैज्ञानिकों को फैलोशिप, भाषण एवं अन्य राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए। पिछले वर्ष संस्थान के विभिन्न विभागों ने डीएसटी, विश्व स्वास्थ्य संगठन, डीबीटी, आईसीएमआर तथा अन्य बाहरी एजेंसियों द्वारा वित्त पोषित 200 अनुसंधान परियोजनाएं आगे बढ़ाईं तथा राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय तथा पीजीआई शोध फंड्स द्वारा समर्थित 577 अनुसंधान परियोजनाएं चल रही हैं। स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान ने अपनी विविध आवश्यकताओं के अनुरूप विस्तृत कंप्यूटरीकरण परियोजना के अंतर्गत सॉफ्टवेयर ज़रूरतों को पूरा कर लिया है। कंप्यूटरीकरण संबंधी गतिविधियों के नियंत्रण के लिए मुख्य डाटा केंद्र अर्थात केंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष पहले से ही स्थापित है। विभिन्न मॉड्यूलों के कार्यान्वयन के लिए संकाय, पंजीकरण काउंटरों, फीस काउंटरों, भंडारगृह, प्रयोगशालाओं आदि को थिन क्लांइट्स, फैट क्लाइंट्स, प्रिंटर्स आदि सहित अन्य हार्डवेयर वितरित कर दिये गये हैं। स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान परिसर के विभिन्न स्थलों में सभी रजिस्ट्रेशन काउंटरों में विभिन्न सार्वजनिक ओपीडीज/विशिष्टि क्लिनिक्स के लिए रजिस्ट्रेशन मॉड्यूल सफलतापूर्वक कार्यान्वित कर दिये गये हैं। इसके अलावा सभी सरकारी संवाद करने के लिए संकाय सदस्यों तथा अधिकारियों को पृथक-पृथक ई-मेल आईडी आवंटित कर केंद्रीकृत ई-मेल सुविधा पहले से ही शुरू कर दी गई है। संस्थान के कार्मिकों को विभिन्न सार्वजनिक ओपीडी/विशिष्ट क्लिनिक्स/ स्टाफ क्लिनिक सुविधाओं से चिकित्सा लाभ लेने हेतु पीजीआई की नीति के अनुसार नए सीआर नंबर्स आवंटित कर दिये गये हैं। विभिन्न प्रवेश काउटर्स तथा वार्डों में रोगी को दाखिल करने, डिस्चार्ज करने, वार्ड-ट्रांसफर हेतु इन-पेशेंट मॉड्यूल कार्यान्वित कर दिया गया है। एचआईएस के अकाउंट्स मॉड्यूल द्वारा विभिन्न जांचों के लिए फीस एकत्रीकरण किया जा रहा है। एचआईएस इनवेंटरी मॉड्यूल द्वारा सभी भंडारों की गतिविधियां कंप्यूटरीकृत कर दी गई हैं। फार्मेसी, स्टेशनरी, स्टोर्स तथा सर्जिकल स्टोर्स आदि से सामग्रियों को लेने के लिए विभिन्न वार्डो, विभागों/अनुभागों में ऑन-लाइन इनडेंट्स देने शुरू कर दिये हैं।
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